Wednesday, 7 July 2021

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! (Corona Pandemic)

 काल बैठा आज समय चक्र पे 

कर रहा तांडव नृत्य है 

घुट घुट सिमट रही ज़िन्दगी 

लाचार सिस्टम की व्यस्था है 

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है !


लिपटी लाश कफ़न में संग चली बेबशी है 

पूरब पच्छिम या उत्तर दक्षिण हर तरफ 

धदक रही चिताओ  की अग्नि है 

सफर आखरी,  छुटा अपनों का साथ है 

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है !


डरी-सहमी ज़िन्दगी अपनों  से ही दुरी है 

कही तड़प भूख तो कही सांसो की लड़ाई है 

हो रही कही सौदे ज़िन्दगी के तो बिक रहा कही मौत है 

चारो तरफ है मचा हाहाकार, परेशान ज़िन्दगी है 

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है !


ज़िन्दगी बेबश लाचारी में और 

क़ैद बचपन बंद चारदीवारी में

मुश्किल बड़ी अब राह जीवन कठिन है 

हे पालनहार , करो मदद अब आश तुम्हारी है 

अब आश तुम्हारी है, अब आश तुम्हारी है !!! 

Monday, 28 December 2020

एक सङ्कल्प

चला था एक दिन दिल मे ये सङ्कल्प लिये
ना रूकूँगा कभी,  ना झुकूँगा कभी 
अपनी वजूद समय को दिखलाऊँगा !
क्या हुआ गर मुझमें सूरज सा तेज नहीं 
पर दीपक बन रौशन अपनी हदें करूँगा 
चला था एक दिन दिल मे ये सङ्कल्प लिये
ना रूकूँगा कभी,  ना झुकूँगा कभी 
अपनी वजूद समय को दिखलाऊँगा !
अटल है जिद मेरी क्षितिज़ पार जाने की 
चाहे लाख कोशिश करे तकदीर झुकाने की 
है बुलंद होशला पथरो सा हर आंधी से टकराऊँगा 
चाहे जितनी हो मुश्किलें एक पल को ना घबराऊँगा 
चला था एक दिन दिल मे ये सङ्कल्प लिये
ना रूकूँगा कभी, ना झुकूँगा कभी 
अपनी वजूद समय को दिखलाऊँगा !


Wednesday, 31 October 2018

राजनीति के इस खेल में

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

कभी धर्म, कभी जाती, कभी भाषा
बटते रहे वोटों की गिनती में

सौंपी अपनी तक़दीर जिनके हाथोँ
भूल गए कबके बैठ गद्दी में

मरते रहे किसान, लुटती रही आबरू
बैठ तमाशा हम देखे रहे TV में

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

हम कठपुतलियाँ उनके हाथों की 
शामिल है रैलियों की भीड़ में 

नहीं पता है दोस्त और दुश्मन कौन 
बन प्यादा बिछे उनके शतरंज में 

कभी ये कभी वो आते जाते करे वादे हज़ार 
पर अब भी खड़े हम लाचार उसी मुहाने में 

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

Friday, 3 August 2018

ऐ मुसाफिर

ऐ  मुसाफिर क्यूँ देखें  राह किसी का
जो चलना तुझे है अकेले !

दूर नहीं मंज़िल, है पास तेरे कदमो की
जो तू ठान ये ले मन में

चल बढ़ लड़ राह मुश्किलों से, कर ढृढ़ संकल्प
करेगी कायनात भी तेरी मदद

है जो धुप तेरे सर तो, चंचल छाँव भी है आगे
ना देख पीछे मंजिल तेरे है सामने

हो ना जो डगर कही तो, बना खुद  तू राह अपनी
पर रुके न कदम कही तेरे

ना डर तू मुश्किलों से, न भटक वक़्त की बहकावे से
बेपरवाह मगन बढ़ तू गीत ये गाए

ऐ  मुसाफिर क्यूँ देखें  राह किसी का
जो चलना तुझे है अकेले !!

Thursday, 5 July 2018

रब एक है पर नाम अनेक

रब एक है पर नाम अनेक 

ऐ चाँद तू एक हैं
पर तुझे बनाने वाले अनेक क्यों ?
हैं जमीं एक, मिट्टी हवा पानी एक
पर है उसके नाम अनेक क्यों ?
न वो बदला रंग पानी का 
रखा एक ही आसमान 
फिर बनाकर रूप उसके अनेक 
हम खुद को बाटें क्यों ?
देकर नाम मज़हबी
करते अपने स्वार्थ पुरे
भूल कर मानवता स्नेह और प्रेम
न जाने चले है हम किस और
ऐ चाँद तू एक हैं
पर तुझे बनाने वाले अनेक क्यों ?

Sunday, 21 May 2017

कलम Pen

कलम
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बड़े दिनो बाद आज दिल ने कहा
चलो कलम से बातें करते है !
छूट गया साथ जिसका इस नए युग मे
आज संग उसके थोड़ा समय बिताते है !

छोटी सी चिठ्ठी में जो कभी मेरा हाल बतलाता था
रह गया कही पीछे वो आज twitter, post , email के ज़माने में
बड़े दिनों बाद आज दिल ने कहा
चलो कलम से बातें करते है !

दोस्त वो हमारा बिना जिसके कभी हम अधूरे थे
सुनहरे रंगो से जिसके सपने अपनी लिखा करते थे
computer-mobile ने ऐसे दूर सा कर दिया है उससे हमें
की सजते थे जो कभी सीने में, है पड़े अकेले किसी कोने में
जरूरत उसकी बस सिमट गई अब हस्ताक्षार में
बड़े दिनों बाद आज दिल में कहा
चलो कलम से बातें करते है !

दोस्त ये संग जिनके बिन होली खुद को लेते थे रंग
बदलाव के इस नए युग में भूल गए वो स्याही का रंग
कभी संग इसके कोरे कागज पे सपने लिखा करते थे
भूल कर उसे अब हम मसीनों से बातें करते है
बड़े दिनों बाद आज दिल ने कहा
चलो कलम से बातें करते है !
छूट गया साथ जिसका इस नए युग मे
आज संग उसके थोड़ा समय बिताते है !









Saturday, 15 August 2015

दिल चाहे इश्क़ में तेरे..

Dil chahe ishq me tere khud ko mita du
lakar aasma niche kadmo tere bichha du.
Chura kar sangeet barish ki bundon se
har sham teri mahfil main saza du.
Jo de tu saath mera ye hamrahi
zindagi ki har sans tere naam kar du.

दिल चाहे इश्क़ में तेरे खुद को मिटा दू
लाकर आसमा नीचे कदमो तेरे बिछा दू
चुरा कर संगीत बारिश की बूंदो से
हर शाम तेरी महफ़िल मैं सजा दू
जो दे दे तू साथ मेरा ऐ हमराही
ज़िन्दगी की हर सांस तेरे नाम कर दू। ....



हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! (Corona Pandemic)

 काल बैठा आज समय चक्र पे  कर रहा तांडव नृत्य है  घुट घुट सिमट रही ज़िन्दगी  लाचार सिस्टम की व्यस्था है  हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! लिपट...