Friday, 3 August 2018

ऐ मुसाफिर

ऐ  मुसाफिर क्यूँ देखें  राह किसी का
जो चलना तुझे है अकेले !

दूर नहीं मंज़िल, है पास तेरे कदमो की
जो तू ठान ये ले मन में

चल बढ़ लड़ राह मुश्किलों से, कर ढृढ़ संकल्प
करेगी कायनात भी तेरी मदद

है जो धुप तेरे सर तो, चंचल छाँव भी है आगे
ना देख पीछे मंजिल तेरे है सामने

हो ना जो डगर कही तो, बना खुद  तू राह अपनी
पर रुके न कदम कही तेरे

ना डर तू मुश्किलों से, न भटक वक़्त की बहकावे से
बेपरवाह मगन बढ़ तू गीत ये गाए

ऐ  मुसाफिर क्यूँ देखें  राह किसी का
जो चलना तुझे है अकेले !!

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