Wednesday, 31 October 2018

राजनीति के इस खेल में

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

कभी धर्म, कभी जाती, कभी भाषा
बटते रहे वोटों की गिनती में

सौंपी अपनी तक़दीर जिनके हाथोँ
भूल गए कबके बैठ गद्दी में

मरते रहे किसान, लुटती रही आबरू
बैठ तमाशा हम देखे रहे TV में

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

हम कठपुतलियाँ उनके हाथों की 
शामिल है रैलियों की भीड़ में 

नहीं पता है दोस्त और दुश्मन कौन 
बन प्यादा बिछे उनके शतरंज में 

कभी ये कभी वो आते जाते करे वादे हज़ार 
पर अब भी खड़े हम लाचार उसी मुहाने में 

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

No comments:

Post a Comment

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! (Corona Pandemic)

 काल बैठा आज समय चक्र पे  कर रहा तांडव नृत्य है  घुट घुट सिमट रही ज़िन्दगी  लाचार सिस्टम की व्यस्था है  हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! लिपट...