Wednesday, 31 October 2018

राजनीति के इस खेल में

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

कभी धर्म, कभी जाती, कभी भाषा
बटते रहे वोटों की गिनती में

सौंपी अपनी तक़दीर जिनके हाथोँ
भूल गए कबके बैठ गद्दी में

मरते रहे किसान, लुटती रही आबरू
बैठ तमाशा हम देखे रहे TV में

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

हम कठपुतलियाँ उनके हाथों की 
शामिल है रैलियों की भीड़ में 

नहीं पता है दोस्त और दुश्मन कौन 
बन प्यादा बिछे उनके शतरंज में 

कभी ये कभी वो आते जाते करे वादे हज़ार 
पर अब भी खड़े हम लाचार उसी मुहाने में 

राजनीति  के इस खेल में
हुवे पराये अपने ही देश में

Friday, 3 August 2018

ऐ मुसाफिर

ऐ  मुसाफिर क्यूँ देखें  राह किसी का
जो चलना तुझे है अकेले !

दूर नहीं मंज़िल, है पास तेरे कदमो की
जो तू ठान ये ले मन में

चल बढ़ लड़ राह मुश्किलों से, कर ढृढ़ संकल्प
करेगी कायनात भी तेरी मदद

है जो धुप तेरे सर तो, चंचल छाँव भी है आगे
ना देख पीछे मंजिल तेरे है सामने

हो ना जो डगर कही तो, बना खुद  तू राह अपनी
पर रुके न कदम कही तेरे

ना डर तू मुश्किलों से, न भटक वक़्त की बहकावे से
बेपरवाह मगन बढ़ तू गीत ये गाए

ऐ  मुसाफिर क्यूँ देखें  राह किसी का
जो चलना तुझे है अकेले !!

Thursday, 5 July 2018

रब एक है पर नाम अनेक

रब एक है पर नाम अनेक 

ऐ चाँद तू एक हैं
पर तुझे बनाने वाले अनेक क्यों ?
हैं जमीं एक, मिट्टी हवा पानी एक
पर है उसके नाम अनेक क्यों ?
न वो बदला रंग पानी का 
रखा एक ही आसमान 
फिर बनाकर रूप उसके अनेक 
हम खुद को बाटें क्यों ?
देकर नाम मज़हबी
करते अपने स्वार्थ पुरे
भूल कर मानवता स्नेह और प्रेम
न जाने चले है हम किस और
ऐ चाँद तू एक हैं
पर तुझे बनाने वाले अनेक क्यों ?

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! (Corona Pandemic)

 काल बैठा आज समय चक्र पे  कर रहा तांडव नृत्य है  घुट घुट सिमट रही ज़िन्दगी  लाचार सिस्टम की व्यस्था है  हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! लिपट...