Sunday, 25 November 2012

Khawab


ye ishq hai ki hai koi shahar khwab ka
dil hai magan esme hai khud se bewafa
kaise batawu tumhe ye ehsaas dil ka
hai ye dard mithhi si ya samandar pyaar ka
armano ki es lahar main to bas bah raha 
ye ishq hai ki hai koi shahar khwab ka


ये  इश्क़  है  या है कोई शहर खवाब का 
दिल है मगन इसमें है खुद से बेवफा 
कैसे बताऊ तुम्हे ये एहसास दिल का 
है ये दर्द मीठी सी या समंदर प्यार का 
अरमानो की इस लहार में तो मैं बस बह रहा
ये  इश्क़  है  या है कोई शहर खवाब का 

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