रब एक है पर नाम अनेक
पर तुझे बनाने वाले अनेक क्यों ?
हैं जमीं एक, मिट्टी हवा पानी एक
पर है उसके नाम अनेक क्यों ?
न वो बदला रंग पानी का
रखा एक ही आसमान
फिर बनाकर रूप उसके अनेक
हम खुद को बाटें क्यों ?
देकर नाम मज़हबी
करते अपने स्वार्थ पुरे
भूल कर मानवता स्नेह और प्रेम
न जाने चले है हम किस और
ऐ चाँद तू एक हैं
देकर नाम मज़हबी
करते अपने स्वार्थ पुरे
भूल कर मानवता स्नेह और प्रेम
न जाने चले है हम किस और
ऐ चाँद तू एक हैं
पर तुझे बनाने वाले अनेक क्यों ?