Wednesday, 7 July 2021

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! (Corona Pandemic)

 काल बैठा आज समय चक्र पे 

कर रहा तांडव नृत्य है 

घुट घुट सिमट रही ज़िन्दगी 

लाचार सिस्टम की व्यस्था है 

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है !


लिपटी लाश कफ़न में संग चली बेबशी है 

पूरब पच्छिम या उत्तर दक्षिण हर तरफ 

धदक रही चिताओ  की अग्नि है 

सफर आखरी,  छुटा अपनों का साथ है 

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है !


डरी-सहमी ज़िन्दगी अपनों  से ही दुरी है 

कही तड़प भूख तो कही सांसो की लड़ाई है 

हो रही कही सौदे ज़िन्दगी के तो बिक रहा कही मौत है 

चारो तरफ है मचा हाहाकार, परेशान ज़िन्दगी है 

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है !


ज़िन्दगी बेबश लाचारी में और 

क़ैद बचपन बंद चारदीवारी में

मुश्किल बड़ी अब राह जीवन कठिन है 

हे पालनहार , करो मदद अब आश तुम्हारी है 

अब आश तुम्हारी है, अब आश तुम्हारी है !!! 

हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! (Corona Pandemic)

 काल बैठा आज समय चक्र पे  कर रहा तांडव नृत्य है  घुट घुट सिमट रही ज़िन्दगी  लाचार सिस्टम की व्यस्था है  हे प्रभु , ये कैसी बिडम्बना है ! लिपट...